Wednesday, March 30, 2011

गल्ली to दिल्ली ( गट्ट्याकाव्य )

काल परवापर्यंत आमच्या गल्लीत प्रसिद्ध असणारा गट्ट्या आज online भेटला.
गट्ट्या ने डिग्री मिळवून मिळवून सर्व विद्यापीठांना त्राही माम करून सोडले होते हे आपल्याला माहित असेलच. नसल्यास येथे सदर वृत्तांत वाचावा.
http://mazilekhani.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

तर गटटया दिल्लीत आहे असे कळताच वियोगला गट्ट्याच्या तोडीचे काव्य लगेचच स्फुरले.


आधी  नासाविली  गल्ली  ,मग  देखियेली  दिल्ली
ठेविली  पक्ष्यांत  जणू ,  कुणी  माठ  बिल्ली
हो  हो  हो
आधी  नासाविली  गल्ली  ,मग  देखियेली  दिल्ली

मोठी  रचली  आहे  तिजोरी ,
त्यात  भरल्या  आहेत  विजारी ,
परी ..सापडेना  त्याला  कधी  किल्ली
हो  हो  हो
आधी  नासाविली  गल्ली  ,मग  देखियेली  दिल्ली

खाई रोज  रोज  हा  अंडा ,
हाती  घेवूनी  उभा हा  दंडा ,
परी  सापडेना  त्याला  कधी  गिल्ली
हो  हो  हो
आधी  नासाविली  गल्ली  ,मग  देखियेली  दिल्ली

अचानक  सापडली  त्यास  गिल्ली ,
गिल्लीखालीच  हो  होती  किल्ली ,
परी  वाकताच  नाडीची.. गाठ झाली  ढिल्ली
हो  हो  हो
आधी  नासाविली  गल्ली  ,मग  देखियेली  दिल्ली

~वियोग